आज हम विश्वकर्मा पूजा पर निबंध पढ़ेंगे। आप Essay on Vishwakarma Puja in Hindi को ध्यान से और मन लगाकर पढ़ें और समझें। यहां पर दिया गया निबंध कक्षा (For Class) 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8 के विद्यार्थियों के लिए उपयुक्त हैं।
विश्वकर्मा पूजा पर निबंध Essay on Vishwakarma Puja in Hindi
हिंदू धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि एक ईश्वर के अलग-अलग कार्यों को करने के कारण मुख्य रूप से तीन नाम हैं। वह जब सृष्टि को उत्पन्न करता है, तो उसे ‘ब्रह्मा’ कहते हैं, पालन करता है तो ‘विष्णु’ और जब इसका संहार करता है, तो रुद्र इस नाम से उसे पुकारा जाता है।
ब्रह्मा ज्ञान के देवता हैं। इस ज्ञान के दो भेद हैं भौतिक और आध्यात्मिक। समस्त शिल्प और वास्तु के स्वामी ब्रह्मा जी की संतति हैं विश्वकर्मा, इसीलिए इनका रूप-स्वरूप ब्रह्मा जी की ही तरह है। लोक परंपरा के अनुसार, मूर्तिकार और भवन निर्माण करने वाले (राज मिस्त्री) के पूजन का विधान मानो इसी ओर संकेत करता है। मान्यता है कि स्वर्ण पुरी लंका का निर्माण विश्वकर्मा ने ही किया था। इनका संबंध महर्षि अंगिरा से भी बताया जाता है। देश में कई बार, अपनी-अपनी परंपरा के अनुसार, विश्वकर्मा की पूजा की जाती है। दीपावली के अगले दिन, गोवर्धन पूजन के दिन, विशेष रूप से औजारों की पूजा की जाती है। रूसी क्रांति के रूप में 1 मई को जहां श्रम दिवस’ के रूप में मान्यता प्राप्त है, वहीं 5 मई को क्योंकि महर्षि अंगिरा जयंती होती है इसलिए इस दिन विश्वकर्मा का विशेष रूप से पूजन किया जाता है।
विश्वकर्मा को एक पद के रूप में भी मान्यता प्राप्त है। बिलकुल उसी तरह जैसे व्यास’ एक पद है, जिस पर प्रतिष्ठित होने वाले कई आचार्यों के नामों का उल्लेख पुराणों में किया गया है।
हिंदू धर्म ग्रंथों में अस्त्र-शस्त्रों को जड़ नहीं माना जाता, इसीलिए विजयादशमी को क्षत्रिय शस्त्र पूजा करते हैं और विश्वकर्मा पूजन महोत्सव पर औजारों की पूजा की जाती है। जिन शस्त्र और औजारों द्वारा हम अपना कर्तव्य बखूबी निभाते हैं, उनका सम्मान तो किया ही जाना चाहिए।
इन परंपराओं के मूलस्रोत को जानने के बाद यह भी निश्चित हो जाता है कि भारतीय चिंतन में कार्य-व्यवस्था की दृष्टि से भले ही भेद प्रतीत होता हो, लेकिन असल में कोई न तो छोटा है, न ही बड़ा।