आज हम गुरु पूर्णिमा पर निबंध पढ़ेंगे। आप Essay on Guru Purnima in Hindi को ध्यान से और मन लगाकर पढ़ें और समझें। यहां पर दिया गया निबंध कक्षा (For Class) 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8 के विद्यार्थियों के लिए उपयुक्त हैं।
गुरु पूर्णिमा पर निबंध Essay on Guru Purnima in Hindi
आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरूपूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। गुरूपूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरंभ में आती है। इस दिन से चार महीने तक साधु-संत एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ होते हैं-न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। अध्ययन के लिए भी ये उपयुक्त माने गए हैं। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, ऐसे ही गुरुचरणों में उपस्थित जिज्ञासु-साधकों को ज्ञान, शांति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की योग्यता प्राप्त होती है। प्राचीन समय में, जब शिक्षा गुरुकुलों और ऋषिकुलों में दी जाती थी, शिक्षा के नए सत्र का प्रारंभ इसी दिन से हुआ करता था।
यह दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी है। वे श्रीविष्णु का अवतार थे। उन्होंने चारों वेदों को व्यवस्थित किया था। इस कारण उनका एक नाम वेद व्यास भी है। उन्हें ‘आदिगुरु’ कहा जाता है और उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को ‘व्यास पूर्णिमा’ नाम से भी जाना जाता है। विद्वानों और संत-महात्माओं में व्यासपीठ का इसीलिए विशेष महत्त्व है। भक्तिकाल के संत घीसादास, जो संत कबीर के शिष्यों में से एक थे, जन्म इसी दिन हुआ था।
शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है-अंधकार या मूल अज्ञान और रु का अर्थ है-उसका निवारण करने वाला। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है क्योंकि वह अज्ञान (तिमिर) का ज्ञान से निवारण कर देता है, अर्थात् अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को ‘गुरु’ कहा जाता है।
गुरु के माहात्म्य का वर्णन करते हुए कहा गया है कि ईश्वर और गुरु एक साथ यदि सामने खड़े हो जाएं, तो पहले नमस्कार गुरु को करना चाहिए। क्योंकि उन्होंने ईश्वर के बारे में ज्ञान दिया है और उन्हीं की कृपा से ईश्वर के दर्शन हुए हैं।